सिंधु पर टिकी करोड़ों खेलप्रेमियों की उम्मीदें, इतिहास रचने से बस एक कदम दूर

पीवी सिंधु
पीवी सिंधु
शनिवार का दिन पीवी सिंधु का था। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में चीन की चेन यू फेई को 21-7, 21-14 से हराया। बल्कि इसलिए क्योंकि वो अपनी विरोधी खिलाड़ी के मुकाबले लगभग दोगुना बेहतर खेल रही थीं। सेमीफाइनल मुकाबले की स्कोरलाइन यही बताती है। दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि मैच में जो 63 रैलियां हुईं उसमें से 42 उन्होंने जीतीं जबकि चेन यू फेई ने 21।

मैच के दौरान लगातार प्वाइंट्स जीतने के मामले में भी वो अपनी विरोधी खिलाड़ी से कहीं आगे थीं। इसके अलावा उन्होंने 5 गेम प्वाइंट्स जीते। जबकि चेन यू फेई ने एक भी नहीं। कुल 40 मिनट में इस मुकाबले को जीतकर उन्होंने तीसरी बार चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने का कारनामा किया है। बड़ी बात ये भी है कि वो लगातार तीसरी बार विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंची हैं।

2018 में उन्हें कैरोलिना मारीन और 2017 नोजोमी ओकुहारा के हाथों हार कर सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा था। रविवार को फाइनल में एक बार फिर उन्हें जापान की नोजोमी ओकुहारा का सामना ही करना है। विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए ही पीवी सिंधु ने पिछले कुछ टूर्नामेंट्स से अपना नाम वापस लिया था। अगला साल 2020 ओलंपिक का भी है। ऐसे में अगर रविवार को पीवी सिंधु अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर इतिहास रचती है तो ये पूरे देश के लिए गर्व का लम्हा होगा।

पीवी सिंधु की ताकत

ये बात थोड़ा परेशान करती है कि नोजोमी ओकुहारा का प्रदर्शन पीवी सिंधु पर भारी पड़ता है। लेकिन अगर आप पीवी सिंधु का खेल देखेंगे तो आपको कुछ बातें सबसे पहले नजर आएंगी। उसमें सबसे बड़ा पक्ष है उनका ‘नैचुरली टैलेंटड’ खिलाड़ी होना। शारीरिक बनावट के लिहाज से भी वो शानदार एथलीट हैं। उनकी लंबाई 5 फुट 10 इंच के आस-पास है। बैडमिंटन कोर्ट में दमदार शॉट लगाने से लेकर कोर्ट को कवर करने तक में ये लंबाई खूब काम आती है।

‘मेंटल टफनेस’ के लिहाज से उनकी सबसे बड़ी खूबी है बेखौफ होना। उन्हें इस बात से फर्क ही नहीं पड़ता है कि कोर्ट में उनके सामने कौन है। ये वैसे ही है जैसे कोई क्रिकेटर पिच और विरोधी गेंदबाज की परवाह किए बिना अपना स्वाभाविक खेल खेलता है। पीवी सिंधु को भी इस बात की परवाह कम ही रहती है कि कोर्ट में दूसरी तरफ उनके सामने कौन है। लिहाजा नोजोमी ओकुहारा के लिए मुकाबला आसान नहीं रहने वाला।

पीवी सिंधु का पिछले एक दशक का सफर

ये कहानी पीवी सिंधु के ओलंपिक मेडल जीतने के बहुत पहले की है। तब बहुत कम ही लोग उन्हें जानते थे। करीब 8 साल बीत गए होंगे। हैदराबाद की पुलेला गोपीचंद एकेडमी की बात है। अभी 6 भी नहीं बजे थे। एक पतली दुबली लंबी सी लड़की वहां पहुंची। उस लड़की ने एकेडमी के बड़े से हॉल में आने के बाद अपनी किट रखी।

एक सेकेंड की देरी किए बिना भी उसने दौड़कर कोर्ट के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। ऐसा लगा कि उसके शरीर में कोई मशीन लगी है तो एकेडमी के उस हॉल में घुसते ही ऑन हो जाती है। उसके बाद पीवी सिंधु ने रैकेट थामा और प्रैक्टिस शुरू हो गई। उस हॉल में करीब एक दर्जन खिलाड़ी और भी खेल रहे थे। लेकिन बीच बीच में हर कोई पीवी को देख लेता था।

ऐसा इसलिए क्योंकि उसके चेहरे पर एक स्वाभाविक मुस्कान थी। जो पसीना बहा रहे हर खिलाड़ी को अच्छी लगती थी। पीवी सिंधु के चेहरे पर वो शायद अपने हर शॉट के बाद अपनी ताकत और कमजोरी को समझने की हंसी। उसी रोज पहली बार मुझे कोच गोपीचंद ने बताया था कि वो हर सुबह 50 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर से उनकी एकेडमी में आती रही हैं। लेकिन उसे कभी देर नहीं होती। विश्व चैंपियनशिप का खिताब वो दो बार ‘मिस’ कर चुकी हैं। अब करोड़ों खेलप्रेमियों की उम्मीदें हैं कि वो और देरी ना करें।

Related posts