झारखंड में अफसर नहीं दे रहे मंत्रियों को भाव

राज्य में मंत्रियों और उनके अधीन अफसरों के बीच खींचतान फिर देखने में आ रही है। राज्य में राजनीतिक संकट का नया दौर शुरू होने से अफसरों ने एक बार फिर से अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है। ऐसे में मंत्री लाचार नजर आ रहे हैं।

हालात यह हैं कि अधिकारी अब मंत्रियों को फाइल तक नहीं दिखा रहे हैं। अफसरों ने मंत्रियों की अनदेखी करनी शुरू कर दी है। इस कारण विभाग में फाइलों की भरमार है। वित्तीय वर्ष 2012-2013 समाप्त होने वाला है। ऐसे में इसका असर विकास कार्यों पर पड़ेगा।

पहले भी मंत्रियों और अधिकारियों के बीच खींचतान कई बार सार्वजनिक हो चुकी है। मंत्री सत्यानंद झा बाटुल और उनके विभागीय सचिव के बीच छत्तीस के आंकड़े रहे हैं तो मंत्री बैद्यनाथ राम की जैक के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मी सिंह से कभी नहीं पटी। इस संबंध में राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण और सहकारिता मंत्री हाजी हुसैन अंसारी का कहना है कि अफसर बहुत तेज होते हैं। जैसे ही गणित गड़बड़ाता है ये नजर फेर लेते हैं। स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है। अधिकारी कन्नी काटने लगे हैं। इनसे ज्यादा तेज और चालाक कोई नहीं होता। हाजी की साफगोई में उनकी पीड़ा और दशा साफ झलक रही है।

प्रांत की एकमात्र महिला मंत्री विमला प्रधान का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। उनका कहना है कि दो साल से ज्यादा के मंत्रित्व काल में उन्होंने यह अनुभव किया कि राज्य के अफसर सहयोगात्मक रवैया नहीं अपनाते। वे व्यवहारिक भी नहीं हैं। केवल सस्पेंड-डिस्चार्ज करने से काम नहीं चलता। इसे लेकर अक्सर उनकी सचिव के साथ बकझक होती है। अफसरों का रवैया अगर ठीकठाक रहता तो राज्य का विकास और तेज होता। कई बार उन्होंने अफसरों के मनमाने रवैये की शिकायत की है लेकिन पूरी तरह सुधार नहीं हुआ।

एक मंत्री के आप्त सचिव ने बताया कि मंत्री ने जब फाइलें मांगी तो अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। जब फिर से कहा गया तो वे मोबाइल बंद करके बैठ गए हैं। सारा कामकाज ठप पड़ा है। बस नाम के ही मंत्री रह गए हैं। झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रीयो भट्टाचार्य का दावा है कि राज्य के ज्यादातर ब्यूरोक्रेट और टेक्नोक्रेट झारखंड विरोधी हैं। वे इसी मानसिकता से काम करते हैं। उनके एजेंडे में सिर्फ संसाधनों का शोषण करना है। मानसिकता बदलेंगे तभी कामकाज को गति मिलेगी।

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