अनधिकृत कॉलोनियों पर फिर बिछी चुनावी बिसात

नई दिल्ली। पिछला चुनाव दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों को अधिकृत करने के मुद्दे पर भी लड़ा गया। अब फिर नवंबर में संभावित दिल्ली विधानसभा चुनाव की मुख्य धुरी यही कॉलोनियां रहने वाली हैं। 70 में से 36 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में रहने वाले इन कॉलोनियों के लाखों वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस की दिल्ली सरकार व भाजपा के कब्जे वाले तीनों एमसीडी एक दूसरे को घेरने में जुट गए हैं।
दरअसल, जिन विधानसभा सीटों को अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले वोटर प्रभावित करते हैं, उनमें मत प्रतिशत ज्यादा रहा था। ऐसे में जाहिर है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर इनका आक्रोश किसी भी दल के रास्ते का रोड़ा बन सकता है। सितंबर-12 में सरकार ने 895 कॉलोनियों को अधिकृत करने का आदेश जारी किया था। लेकिन इनमें अभी तक निजी जमीन पर बसीं 312 कॉलोनियां ही तत्काल प्रभाव से नियमित की गई थीं, इन्हें भी अधिसूचना का इंतजार है। जबकि बाकी 583 कॉलोनियां कानूनी दांव पेंच के सहारे राजनैतिक मकड़जाल में फंसी दिख रही है।
चुनाव के लिए इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए कांग्रेस व भाजपा नेताओं ने जुबानी जंग तेज कर दी है। इन कॉलोनियों के ले-आउट प्लान तैयार करने को लेकर डीसी रेवन्यू यह कहकर हाथ खड़े कर चुके हैं कि बिना कानूनी नक्शे के वे सर्वे नहीं कर सकते। यह इन कॉलोनियों के स्वीकृत होने में एक नया और बड़ा पेंच है।
वैसे कांग्रेस व भाजपा दोनाें ही जानती है कि इस मामले में उनकी तरफ से पैदा हुई अड़चन चुनाव में नुकसान पहुंचा सकती है। इस दौरान इन कॉलोनियों में रहने वाले लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। इन 895 कॉलोनियों के कानूनन अधिकृत व नक्शा पास होने के इंतजार में 1639 में बाकी बची 744 अन्य कॉलोनियाें के लोग भी हैं। उन्हें उम्मीद है कि इन कॉलोनियों पर कुछ फैसला हो तो फिर उनका नंबर भी आए।

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